बुन्देल खण्ड की लोक संस्कृति का इतिहास

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बुधवार, 27 मई 2009

बुंदेलखंड की लोकसंस्कृति का इतिहास



१ जनवरी, १९३१ ११ मई २००३

स्वगत


अपनी रचना के बारे में क्या कहूँ ? कहने से कुछ बनता-बिगड़ता नहीं । इस वजह से स्वगत या अपने आप से कहना ज्यादा अच्छा है
यह सच है कि मैंने बाबा तुलसी की तरह स्वान्त:सुखाय कुछ भी नहीं लिखा । मेरी हर रचना के पीछे कोई-न-कोई धक्का रहा है । संघर्षों में जूझता जीवन कभी पटरी पर रहता है, तो कभी पटरी से नीचे । रास्ते में कुछ ऐसे अनुभव आते हैं, जो यात्री को धकियाकर एक नयी दिशा और नयी गति दे जाते हैं । मेरे सामने ऐसी कई घटनाएँ घटी हैं, साद मेरी रचनाधर्मिता को जगाया है ।


एक महत् उपलब्धि
किसी अंचल की लोकसंस्कृति का इतिहास हींदी और अंग्रेजी में अभी तक नहीं लिखा गया । जहाँ तक मेरी जानकारी है, यह ग्रंथ लोकसंस्कृति के इतिहास की पहली बानगी पेश करता है । इस दृष्टि से, बुंदेलखंड अंचल के लिए ही नहीं, वरन् इस देश और वीश्व के तमाम अंचलों के लिए भी यह ग्रंथ एक महत् उपलब्धि है ।
इस सच्ची दर्पीक्ति के साथ-साथ मैं यह कहना भी उचित समझता हूँ कि. इतिहास-लेखन में मेरी अपनी सीमाएँ रही हैं । मैं जितना कर सका, उतना ही आपके सामने है । उसकी सारी निर्बलताएँ मेरी हैं, उनके बावजूद यदि उसमें आपको कुछ भी प्राप्त हो सके, तो मेरे श्रम की सार्थकता सिद्ध है ।

जन्म: बुंदेलखंड, भारत में १ जनवरी, १९३१ को। एम. ए. हिंदी और अंग्रेजी में। पी-एच. डी. का विषय: बुदेलखंड का मध्ययुगीन काव्य: एक ऐतिहासिक अनुशीलन दस वर्ष अंग्रेजी और पच्चीस वर्ष हिंदी के प्राध्यापक। १९५८ ई. से साहित्यिक सेवा। संस्थापक, संरक्षक, अध्यक्ष, मंत्री एवं कार्य समिति सदस्य के रुप में अनेक संस्थाओं की सेवा। सृजन कविता और कहानी से प्रारम्भ। लगभग ३५ कहानियाँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। १९६२ में आल्लहा ऐतिहासिक उपन्यास प्रकाशित। साहित्य पर ३०, लोकसाहित्य पर ४०, लोककला पर १० शोधलेख; लोकललित निबंध १० ख्यात पत्रिकाओं में प्रकाशित। लोकगीतों और लोकगाथाओं का पाठ-सम्पादान प्रथम बार। छ: सम्पादित पुस्तकें चर्चित। बुदेंलखंड साहित्यिक इतिहास पाँच खंडों में प्रकाश्य। १९८१ ई से ठमामुलिया' त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन। बुदेंलखंड साहित्य अकादमी की संस्थापना। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान। जबलपुर का ठलोकसाहित्य-सम्मान' एंव तिवनी (रीवा) का लोक-भाषा-सम्मान। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ का श्री मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार।
सम्प्रति: अध्यक्ष, बुदेंलखंड साहित्य अकादमी सम्पादक, मामुलिया त्रैमासिक पत्रिका।
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